Bambeshwar Temple,Banda uttar Pradesh

Bambeshwar temple is said to derived its name from Vam Deo Rishi. who is a sage mentioned in hindu mythology as a contemporary of lord Rama.

Vamdeo becomes Bamdeo in time. Bamdeo is said to have had his hermitage at the fort of a hill. There is one big and oldest Shivling is situated in the temple in the kho of Bambeshar Pahar. 

BAMDEO MANDIR BANDA

It is situated at Kailashpuri,District Banda, uttar pradesh which vry much approachable by road through bus and train and now bundelkhand experss way made it more easy to reach.

Just click below the link to know the exact location and to reach

Loacation of Bambeshwar Mandir,Banda Uttar Pradesh 

ऋषि बामदेव से मिली बांदा को पहचान

ऋषि वामदेव के नाम पर इसका बांदा का पूर्व एवं वास्तविक नाम वामदा था किंतु प्रतीत होता है कालांतर में अंग्रेजो द्वारा शुद्ध उच्चारण न ले पाने के कारण अपभ्रंश वश जो बाद में बिगड़ कर बांदा हो गया।
कौन थे ऋषि वामदेव जिसने इस तपोभूमि को जीवन दे जीवंत कर दिया सदैव के लिए

वैदिक काल के ऋषि वामदेव गौतम ऋषि के पुत्र थे इसीलिए गौतम भी कहा जाता था। वामदेव जब मां के गर्भ में थे तभी से उन्हें अपने पूर्वजन्म आदि का ज्ञान हो गया था। उन्होंने सोचा, मां का पेट फाड़ कर बाहर निकलना चाहिए। वामदेव की मां को इसका आभास हो गया। अत: उन्होंने अपने जीवन को संकट में पड़ा जानकर देवी अदिति से रक्षा की कामना की। तबउन्हें वामदेव ने इंद्र को अपने समस्त ज्ञान का परिचय देकर योग से श्येन अर्थात बाज पक्षी का रूप धारण किया तथा अपनी माता के उदर से बिना कष्ट दिए बाहर निकल आए। कुछ लोग यह भी कहते हैं कि वे मां के मुख से निकले थे।
वामदेव ने इस देश को सामगान (अर्थात् संगीत) दिया तथा वे जन्मत्रयी के तत्ववेत्ता माने जाते हैं। भरत मुनि द्वारा रचित भरत नाट्य शास्त्र सामवेद से ही प्रेरित है। हजारों वर्ष पूर्व लिखे गए सामवेद में संगीत और वाद्य यंत्रों की संपूर्ण जानकारी मिलती है।
वामदेव ऋग्वेद के चतुर्थ मंडल के सूत्तद्रष्टा थे।
एक बार इंद्र ने युद्ध के लिए वामदेव को ललकारा था तब इंद्रदेव परास्त हो गए। वामदेव ने देवताओं से कहा कि मुझे दस दुधारु गाय देनी होगी और मेरे शत्रुओं को परास्त करना होगा तभी मैं इंद्र को मुक्त करूंगा। इंद्र और सभी देवता इस शर्त से क्रुद्ध हो गये थे। बाद में वामदेव ने इंद्र की स्तुति करके उन्हें शांत कर दिया था।
वामदेव ने राजा के कर्तव्य आदि पर भी सम्यक विचार प्रस्तुत किये। उन्होंने कहा कि जिस राज्य में अन्यन्त बलवान राजा दुर्बल प्रजा पर अधर्म या अत्याचार करने लगता है, वहाँ उसके अनुचर भी उसी बर्ताव को अपनी जीविका का साधन बना लेते हैं। वे उस पाप प्रवर्तक राजा का ही अनुसरण करते हैं; अतः उदण्ड मनुष्यों से भरा हुआ वह राष्ट्र शीघ्र ही नष्ट हो जाता है। अच्छी अवस्था में रहने पर मनुष्य के जिस बर्ताव का दूसरे लोग भी आश्रय लेते हैं, उस संकट में पड़ जाने पर उसी मनुष्य के उसी बर्ताव को उसके स्वजन भी नहीं सहन करते हैं। दुःसाहसी प्रकृति वाला जो राजा जहाँ कुछ उद्दण्डतापूर्ण बर्ताव करता है, वहाँ शास्त्रोक्त मर्यादा का उल्लंघन करने वाला वह राजा शीघ्र ही नष्ट हो जाता है। जो क्षत्रिय राज्य में रहने वाले विजित या अविजित मनुष्यों को अपने परम्परागत आचार-विचार का पालन नहीं करने देता वह क्षत्रिय-धर्म से गिर जाता है। यदि कोई राजा पहले का उपकारी हो और किसी कारणवश वर्तमानकाल में द्वेष करने लगा हो तो उस समय जो राजा उसे युद्ध में बंदी बनाकर द्वेषवश उसका सम्मान नहीं करता, वह भी क्षत्रिय धर्म से गिर जाता है। राजा यदि समर्थ हो तो उत्तम सुख का अनुभव करे और कराये तथा आपत्तिमें पड़ जाय तो उसके निवारण का प्रयत्न करे।ऐसा करने से वह सब प्राणियों का प्रिय होता है और राजलक्ष्मी से भ्रष्ट नहीं होता। राजा को चाहिये यदि किसी का अप्रिय किया हो तो फिर उसका प्रिय भी करे। इस प्रकार यदि अप्रिय पुरुष भी प्रिय करने लगता है तो थोड़े ही समय में वह प्रिय हो जाता है। मिथ्या भाषण करना छोड़ दे, बिना याचना या प्रार्थना किये ही दूसरों का प्रिय करे। किसी कामना से, क्रोध से तथा द्वेष से भी धर्म का त्याग न करे। विद्वान् राजा छल-कपट छोड़कर ही बर्ताव करे। सत्य को कभी न छोड़े। इस तरह उन्होंने राजधर्म की सम्यक और विस्तृत व्याख्य़ा की।
जय जय तपोभूमि की जय जय मातृ भूमि की



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