अप्प दीपो भव

गुरु शिष्य परंपरा पर आजकल जी भर के प्रहार हो रहा है , ब्राह्मण - गैर ब्राह्मण बाबाओं पर भी चर्चा है।
गुरु का अर्थ होता है जो अंधकार को मिटाये न कि अंध बनाये। किसी भी परम्परा को मात्र गलत या सही कह देना उचित नही है। गुरु तो मार्ग दिखाता है  आप उसे साध्य मान लेंगे तो अंधता आयेगी ही।
 अप्प दीपो भव

ओशो की एक कहानी है।
एक स्कूल में मास्टर जी ने बच्चों से कहा कि दिन में एक नेक काम जरूर करना। कल मैं तुमसे पूछूंगा कि तुमने क्या नेक काम किया। अगले दिन मास्टर जी ने कक्षा के सभी बच्चों से पूछा , बताओ तुमने क्या - क्या नेक काम किया। तो एक बच्चा बोला , मास्टर जी मैंने एक बूढ़ी महिला को सड़क पार करवाई। मास्टरजी बोले , बहुत सुंदर ! फिर अगले बच्चे से पूछा तो उसने भी यही कहा कि मैंने भी बूढ़ी महिला को सड़क पार कराई। तीसरे बच्चे से पूछा , तो उसने भी यही कहा कि बूढ़ी महिला को सड़क पार कराई।

मास्टर जी ने हैरानी से पूछा , तुम सब को इतनी बूढ़ी औरतें कहां से मिल गईं ? तब एक बच्चा बोला , मास्टर जी ! बूढ़ी औरत तो एक ही थी , लेकिन वह सड़क पार होना नहीं चाहती थी। हम सब ने मिल कर किसी तरह से उसे जबर्दस्ती करवाई।
यही हाल आजकल के लोगोंका है।हर कोई दूसरे को ठीक करना चाहता है , परंतु स्वयं को कोई ठीक नहीं करना चाहता। आप एक ही व्यक्ति का उद्धार कर सकते हैं और वह आप स्वयं हैं। 

अब प्रश्न यह है कि अपना उद्धार कैसे करें ? इसके लिए शास्त्र तीन तरह के योगों पर प्रकाश डालते हैं।
पहला कर्मयोग , जिसमें मनुष्य अपने जीवन में श्रेष्ठ लक्ष्य बना कर मन और बुद्धि को उस लक्ष्य से जोड़ देता है।
दूसरा है -भक्तियोग , जिसमें मन को प्रभु के चरणों में लगा कर हर कार्य को निमित्त भाव से करता है।
तीसरा है- ज्ञानयोग , जिससे अज्ञान रूपी अंधकार को हटाकर मनुष्य ज्ञान का दीपक जलाता है।
यही है अपने उद्धार का सर्वोत्तम मार्ग !

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