शिवलिंग पर रोज़ाना हज़ारों लीटर दूध की बर्बादी को आप कैसे उचित ठहरा सकते हैं?

 क्या ऐसा करना उचित नही होगा कि आप अपने बड़े घर को बेच कर एक झोपड़ी में चले जाएं और बाकी बचे पैसे गरीबों में दान कर दें?

  • या ये कि आप अपने बच्चे को सरकारी विद्यालय भेजें और बचे हुए पैसे से गरीब बच्चों को पढ़ा दें?
  • या ये कैसा रहेगा कि आप अपना और अपने परिवार का इलाज सरकारी अस्पताल में कराएं और बाकी पैसो से गरीबों का इलाज बढ़िया अस्पताल में करवा दें?
  • ये भी अच्छा होगा यदि आप अपनी अपनी बहन बेटियों का विवाह मंदिर में कर दें और शादी में बचे लाखों रुपयों से गरीबों की बहन बेटियों का विवाह करवा दें।
  • आपको इतने महँगे मोबाइल या कंप्यूटर की क्या आवश्यकता है? सस्ती चीजें खरीदें और बचे हुए पैसे गरीबों में दान दे दें।
  • आप सस्ते कपड़े भी तो खरीद सकते हैं ताकि बचे हुए पैसों से निर्धन लोगों के तन ढकने का कपड़ा दान दे सकें।
  • आपको अच्छी कार या बाइक की क्या आवश्यकता। ये अच्छा नही होगा कि आप साईकल पर घूमें और बचे हुए लाखों रुपयों से सैकड़ों साईकल खरीद कर गरीबों में दान कर दें?
  • या चलिए कुछ नही तो यही कीजिये कि हर महीने अपनी कमाई का आधा हिस्सा दान में देकर खुद परिवार के साथ किल्लत में दिन गुजारें। गरीबों की बहुत दुआ मिलेगी।

ये पाप-पुण्य वाली युक्ति हर जगह काम नही आती। अगर आप ऊपर लिखे किसी भी चीज का स्वयं पालन नही कर सकते, जिससे आपको निश्चय ही अधिक पुण्य प्राप्त होगा, तो आप दूसरों को वैसा करने को क्यों कहा रहे हैं?

दान अवश्य करना चाहिए किन्तु आस्था का भी अपना मोल होता है। और ऐसा किसने कह दिया कि अगर आप भगवान को कुछ भोग लगा दें तो उसके बाद गरीबों को खाना नही खिला सकते? खिलाइये, जितना सामर्थ्य हो गरीबों की सहायता कीजिये, किन्तु अगर आपकी कुछ आस्था है तो उसे भी अवश्य पूर्ण कीजिये।

वैसे अगर आप ईमानदारी से अपना कर दे रहे हैं तो वही गरीबों की एक अच्छी सहायता है क्योंकि इस देश मे 3% (जी हाँ, आपने सही पढ़ा) से भी कम लोग टैक्स भरते हैं और और देश की 97% जनता (जिनमे अधिकतर गरीब हैं) का भरण पोषण सरकार हमारे आपके दिए पैसों से ही करती है।

उसके ऊपर अगर आप कुछ और देना चाहें तो अवश्य दें। किन्तु यदि वर्ष में एक बार आपको भगवान शिव को 5 रुपये का दूध चढ़ाना हो तो भी अवश्य चढ़ाये। ये ना सोचें कि इस 5 रुपये से किसका भला हो रहा है।

अंत मे ये कहना चाहूंगा कि "भूखे पेट भजन नही होता"। अर्थात सबसे पहले आप स्वयं का, अपने परिवार, पत्नी और बच्चों का ध्यान रखें। उनकी जो भी आवश्यकता है उसे पूरा करें। इसके बाद ही दूसरों के विषय मे सोचें। जब आप और आपका परिवार आर्थिक रूप से सशक्त एवं प्रसन्न होंगे केवल तभी आप दूसरों का भी भला कर सकते हैं।

वैसे तो श्रावण में भगवान शिव को दूध चढ़ाने का वैज्ञानिक कारण भी है किंतु मैं इसे आस्था का विषय ही बने रहने देना चाहता हूँ।

स्रोत :- व्हाट्सप्प सन्देश 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

your comment,feedback inspire us,Thanks for writing