जीवन तो सभी जी रहे हैं और जीना भी है फर्क केवल इतना है कि उसका आनंद हम ले भी रहे हैं या नहीं और यदि ले रहे हैं तो किंतना और कैसे।
आजकल की भाग दौड़ की जिंदगी में अक्सर ये देखने को मिलता है जो नौकरी कर रहे हैं वो भी खुश नहीं है और जो अपना काम कर रहे हैं वो भी प्रसन्न नहीं है।
जिसे देखिये उसका एक ही जवाब है "जी बस कट रही है" किन्तु यदि आपकी सोच सकारात्मक है तो यही जिंदगी जिंदादिली का उदहारण बन जाती है।
कंही किसी मंदिर के निर्माण का कार्य प्रारम्भ हुआ और जैसा की होता है मज़दूर वंहा मज़दूरी में लगे हुए थे कि एक दिन वंहा से गुजरते किसी राहगीर ने पूछ लिया की भाई क्या कर रहे हो ?
"दिखायी नहीं देता कि मज़दूरी कर रहा हूँ , जिंदगी नर्क बनी हुयी है दिनभर कटो मरो और शाम को ठेकेदार की अलग से सुनो " एक मज़दूर ने पूरी खिसियाहट के साथ जवाब दिया।
प्रश्न वही किन्तु दूसरे मज़दूर ने कहा , " जी बस जिंदगी गुजर बसर के लिए काम कर रहे है जो मिल जाता है उसी से घर परिवार का गुजारा हो रहा है भगवन जाने भाग्य में का लिखा है ."
पुनः वही प्रश्न किन्तु उत्तर देखिये
" जी मंदिर बन रहा है भैया, रोजी रोटी की जुगाड़ में कब सुबह हुई कब शाम पता ही नहीं चलता, धन्य भाग्य हमारे कि इसी बहाने भगवान के कुछ काम तो आये.काम का काम और भगवन की पूजा भी।
तो ये है सोच का फर्क, काम वही परिस्थति वही किन्तु एक पूरी तरह से परेशांन है तो दूसरा "जी कट रही है" और एक है कि उसी काम को सुअवसर समझ रहा है प्रसन्नता और खुसी मिल जाने का।
सोचिये की हमें कैसे जीना है भगवान् का धन्यवाद करके या जो मिला है उसे कोसते हुये। मर्ज़ी आपकी परिस्थित सभी की एक सी है बस रंग अलग अलग हैं
आजकल की भाग दौड़ की जिंदगी में अक्सर ये देखने को मिलता है जो नौकरी कर रहे हैं वो भी खुश नहीं है और जो अपना काम कर रहे हैं वो भी प्रसन्न नहीं है।
जिसे देखिये उसका एक ही जवाब है "जी बस कट रही है" किन्तु यदि आपकी सोच सकारात्मक है तो यही जिंदगी जिंदादिली का उदहारण बन जाती है।
कंही किसी मंदिर के निर्माण का कार्य प्रारम्भ हुआ और जैसा की होता है मज़दूर वंहा मज़दूरी में लगे हुए थे कि एक दिन वंहा से गुजरते किसी राहगीर ने पूछ लिया की भाई क्या कर रहे हो ?
"दिखायी नहीं देता कि मज़दूरी कर रहा हूँ , जिंदगी नर्क बनी हुयी है दिनभर कटो मरो और शाम को ठेकेदार की अलग से सुनो " एक मज़दूर ने पूरी खिसियाहट के साथ जवाब दिया।
प्रश्न वही किन्तु दूसरे मज़दूर ने कहा , " जी बस जिंदगी गुजर बसर के लिए काम कर रहे है जो मिल जाता है उसी से घर परिवार का गुजारा हो रहा है भगवन जाने भाग्य में का लिखा है ."
पुनः वही प्रश्न किन्तु उत्तर देखिये
" जी मंदिर बन रहा है भैया, रोजी रोटी की जुगाड़ में कब सुबह हुई कब शाम पता ही नहीं चलता, धन्य भाग्य हमारे कि इसी बहाने भगवान के कुछ काम तो आये.काम का काम और भगवन की पूजा भी।
तो ये है सोच का फर्क, काम वही परिस्थति वही किन्तु एक पूरी तरह से परेशांन है तो दूसरा "जी कट रही है" और एक है कि उसी काम को सुअवसर समझ रहा है प्रसन्नता और खुसी मिल जाने का।
सोचिये की हमें कैसे जीना है भगवान् का धन्यवाद करके या जो मिला है उसे कोसते हुये। मर्ज़ी आपकी परिस्थित सभी की एक सी है बस रंग अलग अलग हैं
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